भाग रहा हूँ मैं दूर सब से, किसी ग़म के असर से,
कभी ज़िम्मेदारियों से, कभी रिश्तों के सफ़र से।

कभी यादों से भागता हूँ, तो कभी लगाव से,
शायद अब बस नहीं चलता, इन तमाम हिसाब से।

कभी वक़्त नहीं होता मेरा, तो कभी हालात नहीं,
कभी रिश्ते नहीं निभते, कभी जज़्बात नहीं।

कुछ पीछे छोड़ आया हूँ, कुछ खो दिया इस राह में,
पर कब तक भागता रहूँगा, इस तन्हा सी चाह में।

कब तक भागूँगा किसी के लिए, किसी अपने के पीछे,
कब तक जलूँगा मैं अधूरा, किसी सपने के नीचे।

डर है कहीं इस दौड़ में, खुद को ही न खो दूँ मैं,
अपना कोई अहम हिस्सा यूँ ही न तोड़ दूँ मैं।

क्यों बाँटूँ मैं ख़ुद को आधा, किसी और के लिए,
बेहतर है सौ फ़ीसदी जी लूँ, बस अपने ही लिए।

AnuragSays….
भाग रहा हूँ मैं दूर सब से, किसी ग़म के असर से, कभी ज़िम्मेदारियों से, कभी रिश्तों के सफ़र से। कभी यादों से भागता हूँ, तो कभी लगाव से, शायद अब बस नहीं चलता, इन तमाम हिसाब से। कभी वक़्त नहीं होता मेरा, तो कभी हालात नहीं, कभी रिश्ते नहीं निभते, कभी जज़्बात नहीं। कुछ पीछे छोड़ आया हूँ, कुछ खो दिया इस राह में, पर कब तक भागता रहूँगा, इस तन्हा सी चाह में। कब तक भागूँगा किसी के लिए, किसी अपने के पीछे, कब तक जलूँगा मैं अधूरा, किसी सपने के नीचे। डर है कहीं इस दौड़ में, खुद को ही न खो दूँ मैं, अपना कोई अहम हिस्सा यूँ ही न तोड़ दूँ मैं। क्यों बाँटूँ मैं ख़ुद को आधा, किसी और के लिए, बेहतर है सौ फ़ीसदी जी लूँ, बस अपने ही लिए। AnuragSays….
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