एक अधूरी प्रेमकथा : चाहत का इत्तेफ़ाक़....
कभी-कभी ज़िंदगी अपने लिखे हुए पन्नों पर ऐसी कहानी दर्ज करती है, जो पूरी न होकर भी अमर हो जाती है। ऐसी ही एक कहानी थी — संजीव कुमार और सुलक्षणा पंडित की। दोनों ने एक-दूसरे को चाहा, पर किस्मत ने उनके मिलन के हर रास्ते पर विरह की रेखा खींच दी।
संजीव कुमार, अभिनय के उस साधक का नाम, जिसने हर किरदार को अपनी आत्मा से जिया। और सुलक्षणा पंडित, मधुर आवाज़ और सौम्य चेहरे वाली वह गायिका-अभिनेत्री, जिसने अपनी पूरी ज़िंदगी एक प्रेम की स्मृति में बिता दी। दोनों के बीच एक गहरा स्नेह, एक अबोला लगाव था — पर जीवन की पटकथा ने उन्हें "साथ" का संवाद कभी नहीं दिया।
संजीव कुमार ने अल्पायु में, मात्र 47 वर्ष की उम्र में इस संसार को अलविदा कह दिया — 6 नवंबर के दिन। और वही तारीख, वर्षों बाद, सुलक्षणा पंडित के अंतिम पड़ाव की बनी — 6 नवंबर। कितना अजीब इत्तेफ़ाक़ है यह, मानो नियति ने वह मिलन दे दिया जो जीवन में अधूरा रह गया था।
सुलक्षणा ने विवाह नहीं किया, क्योंकि उनका हृदय तो पहले ही संजीव को अर्पित हो चुका था। उन्होंने अपने मन के मंदिर में उसी का नाम रखा, उसी की यादों से जीवन के एकांत को भरा। और अब जब वह स्वयं चली गईं, तो तिथि भी वही चुन ली जो संजीव की थी — जैसे आत्माएँ अपने पुराने वादे निभाने लौट आई हों।
अब हर 6 नवंबर, सिर्फ़ दो व्यक्तियों की पुण्यतिथि नहीं होगी — यह उस अधूरी प्रेमकथा का स्मरण दिवस होगा, जिसमें प्रेम का अंत नहीं, अमरत्व लिखा गया।
जीवन में साथ न रह सके, पर मृत्यु ने उन्हें एक ही तारीख़ की चिर-शांति में मिला दिया।
यह नियति का नहीं — शायद प्रेम का सबसे सुंदर इत्तेफ़ाक़ है।
डॉ मुकेश सोनी (कान्हा )
कभी-कभी ज़िंदगी अपने लिखे हुए पन्नों पर ऐसी कहानी दर्ज करती है, जो पूरी न होकर भी अमर हो जाती है। ऐसी ही एक कहानी थी — संजीव कुमार और सुलक्षणा पंडित की। दोनों ने एक-दूसरे को चाहा, पर किस्मत ने उनके मिलन के हर रास्ते पर विरह की रेखा खींच दी।
संजीव कुमार, अभिनय के उस साधक का नाम, जिसने हर किरदार को अपनी आत्मा से जिया। और सुलक्षणा पंडित, मधुर आवाज़ और सौम्य चेहरे वाली वह गायिका-अभिनेत्री, जिसने अपनी पूरी ज़िंदगी एक प्रेम की स्मृति में बिता दी। दोनों के बीच एक गहरा स्नेह, एक अबोला लगाव था — पर जीवन की पटकथा ने उन्हें "साथ" का संवाद कभी नहीं दिया।
संजीव कुमार ने अल्पायु में, मात्र 47 वर्ष की उम्र में इस संसार को अलविदा कह दिया — 6 नवंबर के दिन। और वही तारीख, वर्षों बाद, सुलक्षणा पंडित के अंतिम पड़ाव की बनी — 6 नवंबर। कितना अजीब इत्तेफ़ाक़ है यह, मानो नियति ने वह मिलन दे दिया जो जीवन में अधूरा रह गया था।
सुलक्षणा ने विवाह नहीं किया, क्योंकि उनका हृदय तो पहले ही संजीव को अर्पित हो चुका था। उन्होंने अपने मन के मंदिर में उसी का नाम रखा, उसी की यादों से जीवन के एकांत को भरा। और अब जब वह स्वयं चली गईं, तो तिथि भी वही चुन ली जो संजीव की थी — जैसे आत्माएँ अपने पुराने वादे निभाने लौट आई हों।
अब हर 6 नवंबर, सिर्फ़ दो व्यक्तियों की पुण्यतिथि नहीं होगी — यह उस अधूरी प्रेमकथा का स्मरण दिवस होगा, जिसमें प्रेम का अंत नहीं, अमरत्व लिखा गया।
जीवन में साथ न रह सके, पर मृत्यु ने उन्हें एक ही तारीख़ की चिर-शांति में मिला दिया।
यह नियति का नहीं — शायद प्रेम का सबसे सुंदर इत्तेफ़ाक़ है।
डॉ मुकेश सोनी (कान्हा )
एक अधूरी प्रेमकथा : चाहत का इत्तेफ़ाक़....
कभी-कभी ज़िंदगी अपने लिखे हुए पन्नों पर ऐसी कहानी दर्ज करती है, जो पूरी न होकर भी अमर हो जाती है। ऐसी ही एक कहानी थी — संजीव कुमार और सुलक्षणा पंडित की। दोनों ने एक-दूसरे को चाहा, पर किस्मत ने उनके मिलन के हर रास्ते पर विरह की रेखा खींच दी।
संजीव कुमार, अभिनय के उस साधक का नाम, जिसने हर किरदार को अपनी आत्मा से जिया। और सुलक्षणा पंडित, मधुर आवाज़ और सौम्य चेहरे वाली वह गायिका-अभिनेत्री, जिसने अपनी पूरी ज़िंदगी एक प्रेम की स्मृति में बिता दी। दोनों के बीच एक गहरा स्नेह, एक अबोला लगाव था — पर जीवन की पटकथा ने उन्हें "साथ" का संवाद कभी नहीं दिया।
संजीव कुमार ने अल्पायु में, मात्र 47 वर्ष की उम्र में इस संसार को अलविदा कह दिया — 6 नवंबर के दिन। और वही तारीख, वर्षों बाद, सुलक्षणा पंडित के अंतिम पड़ाव की बनी — 6 नवंबर। कितना अजीब इत्तेफ़ाक़ है यह, मानो नियति ने वह मिलन दे दिया जो जीवन में अधूरा रह गया था।
सुलक्षणा ने विवाह नहीं किया, क्योंकि उनका हृदय तो पहले ही संजीव को अर्पित हो चुका था। उन्होंने अपने मन के मंदिर में उसी का नाम रखा, उसी की यादों से जीवन के एकांत को भरा। और अब जब वह स्वयं चली गईं, तो तिथि भी वही चुन ली जो संजीव की थी — जैसे आत्माएँ अपने पुराने वादे निभाने लौट आई हों।
अब हर 6 नवंबर, सिर्फ़ दो व्यक्तियों की पुण्यतिथि नहीं होगी — यह उस अधूरी प्रेमकथा का स्मरण दिवस होगा, जिसमें प्रेम का अंत नहीं, अमरत्व लिखा गया।
जीवन में साथ न रह सके, पर मृत्यु ने उन्हें एक ही तारीख़ की चिर-शांति में मिला दिया।
यह नियति का नहीं — शायद प्रेम का सबसे सुंदर इत्तेफ़ाक़ है।
डॉ मुकेश सोनी (कान्हा )
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